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Hindi Kahaniya | जादुई वड़ा
कथावाचक: देवगढ़ नाम का एक गांव था जहां पर अधिनव वड़ा बेचा करता था। बारिश का समय था, और सब लोग बारिश में अधिनव की दुकान में वड़ा खाने के लिए आते थे। एक दिन काफी जोर से देवगढ़ में बारिश आने लगी और तभी एक आदमी अधिनव के पास आता है।
दीपक: अधिनव, जल्दी दुकान बंद करो और निकलो। गांव में बाढ़ आने वाली है।
अधिनव: क्या सच में?
दीपक: हां भाई, सच में जल्दी निकलो।
कथावाचक: अधिनव अपनी दुकान बंद करके गांव से बाहर चला जाता है। और गांव में तेज बारिश के कारण बाढ़ आ जाती है। सिर्फ दीपक के खेत को छोड़कर सब गांव वालों के खेत और खलिहान उजड़ चुके थे। गांव में भुखमरी का समय आ चुका था।
गाव की महिला: अब हम क्या खाएंगे? पूरे गांव के खेतों को तो बाढ़ उजाड़ कर ले गई।
दीपक: कोई बात नहीं, आप सब मुझसे अपने खाने के लिए सब्जियां खरीद सकते हैं। सिर्फ मेरे खेत को ही इस बाढ़ में कुछ नहीं हुआ।
अधिनव अपने वड़ा का स्टॉल एक बार फिर गांव में खोल लेता है मगर उसके पास वड़ा बनाने की सामग्री नहीं होती, तो वह दीपक सब्जी वाले से सब्जी खरीदने जाता है।
अधिनव: दीपक भाई, तीन किलो आलू देना और कितना भाव हो गया आलू का?
दीपक: सत्तर रुपये किलो आलू का भाव चल रहा है अधिनव भाई।
अधिनव: क्या? सत्तर!! भाई, यह गलत है। आपको पता है कि गांव की स्थिति क्या चल रही है, लोगों के पास खाने के लिए खाना तक नहीं है और उनके खेत भी तहस-नहस हो चुके हैं। उनके कमाने का ज़रिया ही खेती है। इस समय लोगों की मदद की जगह आप लोगों को लूटने में लगे हैं।
दीपक: अरे अधिनव, तुम अपना पेट भरो ना। तुम्हारे आगे-पीछे तो कोई है नहीं, तो तुम्हें इतना दूसरों के बारे में क्यों सोचना पड़ रहा है?
अधिनव: गलत है! बहुत गलत है दीपक।
अधिनव लोगों के उजड़े हुए खेतों को देखता है और कहता है:
अधिनव: हे भगवान, एक समय था जब ये खेत सब लोगों की रोजी-रोटी का जरिया हुआ करते थे। मगर अब सब कुछ बंजर सा लग रहा है। गांव में भुखमरी छाई है। लोग बीमार हो रहे हैं और मैं हमेशा की तरह आज भी कुछ नहीं कर पा रहा। मैं किसी काम का नहीं हूँ।
अधिनव गांव की स्थिति को लेकर उदास था। तभी उस उजड़े खेत पर एक मनुष्य चमत्कारी रूप से आ जाता है।
राजा: मैं इस समुद्र का राजा हूँ। यह जो बाढ़ तुम्हारे गांव में आई थी, ये मेरी ही गलती की वजह से आई थी। मुझे क्षमा कर देना बेटा। जब बारिश हद से ज्यादा आने लगी तो मैं अपने समुद्र की सीमा को अपने संतुलन में नहीं रख पाया। जिस वजह से इस गाँव में बाढ़ आ गई।
अधिनव: आज गांव में लोगों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है और मैं उनके लिए कुछ भी नहीं कर पा रहा।
राजा: मैं अपनी गलतियों को सुधारना चाहता हूँ। बताओ, तुम इन गांव वालों की मदद क्यों करना चाहते हो?
अधिनव: मैं अपना जीवन अकेले जीता रहा हूं इन गांव वालों को छोड़कर। मेरा और कोई नहीं है। यह गांव वाले ही मेरा परिवार है।
राजा: मैं जानता हूँ अधिनव, तुम वड़ा बेचा करते थे ना। अधिनव, मैं जो वस्तुएं तुम्हें दे रहा हूं, इनसे गांव वालों की मदद करना। जब तक उनके खेत फिर से खिलखिला ना उठें।
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कथावाचक: समुंदर लोक के राजा हाथ आगे करते हैं और उनके हाथ में एक कढ़ाई आ जाती है। राजा वह कढ़ाई अधिनव को दे देते हैं।
अधिनव: इस कढ़ाई का मैं क्या करूं भगवान? वड़ा बनाने के लिए आलू और तेल की भी जरूरत है। वरना मैं वड़ा बेचकर गांव वालों की मदद कैसे करूंगा।
राजा: ये कोई ऐसी वैसी कढ़ाई नहीं है। इसमें तुम्हें तेल की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसमें तुम पानी डाल देना और किसी सब्जी की जरूरत नहीं पड़ेगी। बाढ़ में आए हुए पत्थर को इस कढ़ाई में डाल देना, वो वड़े बन जाएंगे।
कथावाचक: अधिनव कढ़ाई को लेकर अपने घर चला जाता है और कढ़ाई में पानी डालता है। फिर उसके अंदर पत्थर डालता है। पत्थर थोड़ी देर बाद वड़े में बदल जाते हैं।
अधिनव: ये तो सच में वड़े में बदल गए। मैं कल से ही गाँव में वड़ा बेचना शुरू कर देता हूँ, वो भी एकदम कम दामों में।
कथावाचक: अधिनव गांव में वड़ा बेचना शुरू कर देता है। तभी वहां पर एक आदमी उसके पास से वड़े लेने आता है।
गाव का आदमी: मुझे थोड़े वड़े दे दो बेटा। मेरी एक छोटी लड़की है, उसने भी बहुत दिनों से कुछ नहीं खाया। उसकी तबीयत भी ठीक नहीं है। दे दो बेटा, थोड़ा खाने के लिए वड़े दे दो।
अधिनव: बिल्कुल चिंता मत कीजिए, मैं अभी वड़े देता हूँ। इसके पैसे देने की आपको कोई जरूरत नहीं है। आप बस अपना और अपनी बेटी का ध्यान रखिए। और यह लीजिए, एक प्लेट अभी यहीं खा लीजिए।
कथावाचक: जैसे ही वह आदमी उन वड़े को खाता है तो मानो जैसे उसमें एक नई जान सी आ गई हो। वड़े खाते ही वह एकदम तंदुरुस्त हो जाता है।
गाव का आदमी: इसे खाते ही मेरी पीठ का दर्द गायब हो गया और मैं तंदुरुस्त महसूस कर रहा हूँ।
अधिनव: ये जादुई वड़े हैं। इसे मैंने पत्थर से बनाए हैं। इसे खाकर लोगों की बीमारी भी ठीक हो जाती है।
कथावाचक: अधिनव उस आदमी को सारी बातें बताता है और धीरे-धीरे करके सब अधिनव के वड़े की दुकान पर आना शुरू कर देते हैं। जो कोई बीमार था, वे सारे लोग वड़े खाकर ठीक होने लग गए थे।
गाव की महिला: ये वड़े तो बहुत ही स्वादिष्ट हैं। जितना खाओ उतना ही कम लगता है। मन भरता ही नहीं है।
गाव का आदमी: हां सही कह रही हो। और तो और इन वड़ों ने मेरी बेटी की तबीयत भी ठीक की है। मैं अधिनव का बहुत आभारी हूँ। ऐसे मुश्किल वक्त में उसने हम गांव वालों का बहुत साथ दिया है।
कथावाचक: गांव में हर जगह सिर्फ अधिनव के जादुई वड़े की ही चर्चा हो रही थी। यह सब देखकर दीपक को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है।
दीपक: अब इन लोगों को क्या हो गया है? कोई मुझसे सब्जियां खरीदता ही नहीं है। सब अधिनव के उन वड़ों के कारण हुआ है। सोचा था कि नया मकान और बंगला खरीदूंगा मगर उन वड़ों ने मेरे सपने तोड़ दिए। मुझे कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा।
कथावाचक: दीपक मन ही मन कुछ योजना बनाने लगता है तभी उसके पास गाँव के सरपंच आते हैं।
सरपंच: अभी तो सब्जियां कम से कम दामों में बेचना शुरू कर दो दीपक। नहीं तो तुम्हारी दुकान डूब जाएगी और कभी बाहर नहीं आ पाएगी और तुम कभी संभल नहीं पाओगे। गाँव की स्थिति वक्त के साथ ठीक होती जा रही है। भुखमरी भी अधिनव ने खत्म कर दी है।
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दीपक: आप सही कह रहे हैं सरपंच जी, मगर यह जादुई वड़े अधिनव बनाता कैसे है?
सरपंच: उसे समुद्र के राजा ने एक कढ़ाई दी थी जिसमें पत्थर डालने के बाद वो वड़े में बदल जाते हैं। और तो और उसमें तेल डालने की जरूरत भी नहीं पड़ती। आखिर हमें अधिनव के जादुई वड़े ने ही तो जिंदा रखा है।
कथावाचक: यह कहकर सरपंच वहां से निकल जाते हैं। जब अधिनव अपनी दुकान बंद करने जा रहा होता है तभी वहां पर दीपक आ जाता है।
दीपक: अधिनव, मैंने अभी देखा कि समुद्र के किनारे कोई बच्चा फंसा हुआ है। मुझे तैरना नहीं आता मगर शायद तुम उसे बचा लो।
अधिनव: क्या? ठीक है मैं अभी जाता हूं।
कथावाचक: अधिनव तुरंत समंदर की तरफ भागता है और दीपक अपने आप से कहता है:
दीपक: हह! पागल अधिनव। ये तो सच में बेवकूफ बन गया। अब मैं इसकी दुकान से वो कढ़ाई चुरा लूँगा। फिर कौन बनाता है जादुई वड़े। मैं भी देखता हूँ।
कथावाचक: दीपक कढ़ाई सिर पर रखकर जाने लगता है, तभी एक बड़ी रोशनी उसे दिखाई देती है और उसके सिर से वह कढ़ाई नीचे गिर जाती है।
दीपक: ये कैसी रोशनी है?
कथावाचक: तभी वहां पर समंदर के राजा आ जाते हैं।
राजा: अपने आप को संभालो और देखो, मैं तुम्हें जो दिखा रहा हूं। एक बच्चा था जो देवगढ़ का ही रहने वाला था। वो दिन-रात लोगों की मदद करने में ही लगा रहता था।
बच्चा: माँ जी, लाइए मैं आपका ये भार उठा लेता हूँ।
राजा: वो उस बूढ़ी माँजी की मदद करता है। उसका भारी सामान उसके घर तक पहुंचा देता है। उसके पास खाने के लिए खाना तक नहीं है। कई दिनों तक वो सिर्फ समुद्र के तट पर बहता है बिना कुछ खाए-पिए। जब कोई बात करने के लिए नहीं होता है, तो वह कुत्तों के साथ बातें करता है मगर वह बच्चा हमेशा मुस्कुराता रहता है।
बच्चा: आज तो मुझे बहुत सारा खाना मिल गया मगर मैं अकेला कैसे खा पाऊंगा। चलो, मैं अपने दोस्तों के साथ अपना खाना बांट लेता हूं।
राजा: तेज बारिश में उसके सिर पर छत भी नहीं हुआ करती थी। मगर मैंने उसे टूटते हुए नहीं देखा। और जब किसी गांव वाले की मदद करने की बात आई, तब मैंने कभी उसे इंकार करते नहीं देखा। एक दिन सरपंच उसे देखते हैं तेज बारिश में।
सरपंच: बेटा, तुम यहां क्या कर रहे हो? मैंने गांव वालों से तुम्हारे बारे में बहुत सुना है कि तुम गांव वालों की बहुत मदद करते हो।
बच्चा: मेरे पास घर नहीं है ना, सरपंच जी। और मेरा कोई है भी नहीं तो मैं गाँव वालों की ही मदद करता हूँ।
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सरपंच: ऐसा क्यों कहते हो कि तुम्हारा कोई नहीं है? मैं हूं ना। मुझे अपने पिता की तरह ही समझो बेटा। चलो बताओ तुम्हे क्या खाना पसंद है?
बच्चा: जी, मुझे वड़े खाना बहुत-बहुत पसंद है।
राजा: यह कहानी अधिनव की है, जिसके पास कुछ नहीं था मगर जो कुछ भी था उससे भी वह लोगों की मदद ही करता था। और एक यहां तुम हो जिसके पास सब कुछ है फिर भी किसी की मदद नहीं करते।
दीपक: मुझे माफ कर दीजिए भगवान।
राजा: अब जब सबके खेत खलिहान बढ़ेंगे, तुम्हारे सिर्फ घटेंगे। जब भी इस गाँव में बारिश आएगी तुम्हारे खेत और खलिहान नष्ट हो जायेंगे। मगर गाँव वालों के खेत एक नयी सुबह की तरह खिलेंगे।
कथावाचक: दीपक निराश होकर वहां से चला जाता है। अधिनव भी अपनी दुकान पर वापस आ जाता है और वड़े बेचना शुरू कर देता है और गांव वालों की जीवनभर मदद करता रहता है।
Hindi Kahaniya | जादुई वड़ा: इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें दूसरों की मदद और सेवा करनी चाहिए। अधिनव की समझदारी और निस्वार्थ सेवा दूसरों को कैसे मदद करती है, दीपक का लालच और स्वार्थ उसके लिए नुकसानदायक साबित होता है जबकि अधिनव की दयालुता और मददगार स्वभाव गांव वालों की भलाई के साथ-साथ उसे सम्मानित बनाता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी और समृद्धि दूसरों की मदद करके ही मिलती है।
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