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भगवान विष्णु ने शिवजी को अर्पित की आंख, कैसे पाया सुदर्शन चक्र।
भारत की भूमि पौराणिक कथाओं, देवी-देवताओं और उनके अद्भुत लीलाओं से भरी हुई है।
पुराणों में भगवान विष्णु और भगवान शिव की अनेक कथाएँ मिलती हैं, जिनमें से एक अद्भुत और प्रेरणादायक कथा है जब भगवान विष्णु ने शिवजी को अपनी एक आँख चढ़ाई और इसके बदले में उन्हें सुदर्शन चक्र प्राप्त हुआ। यह कथा उनके अखंड भक्ति, त्याग और समर्पण की एक अनूठी मिसाल है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह कथा त्रेतायुग के समय की है, जब धरती पर अत्याचार बढ़ गए थे और असुर अत्यधिक शक्तिशाली हो गए थे। वे देवताओं और ऋषियों को कष्ट देने लगे थे।
इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए देवताओं और ऋषियों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने उनकी प्रार्थनाओं को सुनकर सोचा कि उन्हें एक शक्ति की आवश्यकता है जो हर प्रकार के असुरों का विनाश कर सके।
विष्णु जी का तीव्र तप
भगवान विष्णु ने तब ध्यान किया कि उन्हें सुदर्शन चक्र की आवश्यकता है, जो केवल भगवान शिव ही प्रदान कर सकते हैं। भगवान विष्णु कैलाश पर्वत पर गए, जहां भगवान शिव ध्यानमग्न थे।
भगवान विष्णु ने शिवजी की तपस्या आरम्भ की। वे सौ वर्षों तक भक्ति और तपस्या करते रहे, बिना कुछ खाए या पिए। उनकी भक्ति और तपस्या इतनी शक्ति और समर्पण से भरी हुई थी कि स्वयं भगवती पार्वती भी आश्चर्यचकित हो गईं।
भगवान विष्णु ने शिवजी की आराधना में एक महाशिवलिंग की स्थापना की और निरंतर जल और फूल अर्पित करने लगे। उन्होंने एक विशेष दिन पर एक हजार कमल के फूल अर्पित करने का संकल्प लिया।
उन्होंने इन फूलों को अर्पित करना आरम्भ किया लेकिन अचानक ही उन्हें अहसास हुआ कि केवल 999 फूल ही अर्पित हो चुके हैं और एक फूल कम है।
भगवान विष्णु ने तत्काल निर्णय लिया कि वह अपनी एक आँख भगवान शिव को अर्पित करेंगे क्योंकि उनकी एक आँख को ‘कमल नयन’ के नाम से जाना जाता था। इसके साथ ही उन्होंने अपनी आँख निकालकर शिवलिंग पर अर्पित कर दी।
भगवान विष्णु के इस अद्वितीय त्याग से भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और तुरंत प्रकट होकर बोले, “हे विष्णु, तुम्हारी भक्ति और समर्पण अद्वितीय है। तुम्हारा त्याग और निःस्वार्थ प्रेम मेरे हृदय को छू गया है।”
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सुदर्शन चक्र की प्राप्ति
भगवान विष्णु की अद्वितीय भक्ति देखकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया और कहा, “हे विष्णु, मैं तुम्हें वह शक्ति प्रदान करूंगा जिसकी तुम्हें आवश्यकता है।”
इसके बाद भगवान शिव ने अपनी तीसरी आँख खोलकर एक दिव्य ज्योति प्रकट की और उस ज्योति से सुदर्शन चक्र उत्पन्न हुआ। उन्होंने वह सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को प्रदान किया।
सुदर्शन चक्र एक अत्यंत दिव्य और शक्तिशाली अस्त्र था, जिसका उपयोग भगवान विष्णु ने असुरों का विनाश करने और धर्म की रक्षा के लिए किया।
भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र प्राप्त करने के बाद उन असुरों का संहार किया जिन्होंने धरती पर अत्याचार फैला रखे थे। सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि भगवान विष्णु की विजय से अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति और त्याग की सराहना की।
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अस्त्र बन गया और इसे आज भी उनकी शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
शिक्षाप्रद कथा का सार
सच्चा प्रेम और भक्ति सदैव फलदायी होते हैं। जब भी आप कठिनाइयों में घिरे हों, तो भगवान के प्रति अपनी भक्ति और निष्ठा बनाए रखें, क्योंकि वह सदैव आपके साथ है।
हमने इस कथा के माध्यम से देखा कि भगवान विष्णु और भगवान शिव की आपसी प्रेम और श्रद्धा कितनी अनूठी थी। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि हमारे जीवन में श्रद्धा और समर्पण का कितना महत्व है।
यह कथा हमें बताती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण किसी भी संकट को पार कर सकते हैं। भगवान विष्णु की अनूठी श्रद्धा और भगवान शिव के प्रति उनके विचलित न होने वाली भक्ति हमें यह सिखाती है कि अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए धैर्य, समर्पण और श्रद्धा का होना आवश्यक है।
सभी समस्याओं का समाधान भक्ति और समर्पण में छुपा है। आपभी अपनी समस्याओं का समाधान भगवान की भक्ति और श्रद्धा में पा सकते हैं।
इस कथा को पढ़कर और अपने जीवन में श्रद्धा और भक्ति को लाने के महत्व को समझकर, आप भी अपनी कठिनाइयों का समाधान पा सकते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
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